आप-हम इस समाज का हिस्सा है। आप-हम से ही समाज बना है। आप-हम ही समाज को बनाते-बिगाड़ते हैं। आप और हमारे जीवन में कई बार ऐसे मौके आते है, जब खुशियों के ढेर लग जाते हैं, तो कभी जीवन में गम व्याप्त हो जाता है। ग़मों में हमें खुशियाँ बटोरना होती है। आप और हमारी खुशियों व ग़मों के पल में आप-हम 'आप-हम' पर साथ रहेंगे। आप-हम। ये आप-हम ही है, जो कभी प्यार-मोहब्बत के बातें करते हैं, तो दूसरे ही पल किसी का खून पीने को उतारू हो जाते हैं। आप-हम ही है जो कभी हरिश्चंद्र की औलाद बन जाते हैं, तो दूसरे ही पल झूट बोलने से भी गुरेज नहीं करते हैं। आप-हम ही हैं जो हिन्दी से प्रेम करते है व इंग्लिश भी सीखते हैं। हम भी अंग्रेजी सीखना पसंद करते हैं। वास्तव में हम भाषा की बात करना पसंद करते है। हम हिन्दी से प्रेम करते है, उसे सम्मान देना चाहते हैं, न कि ओरों की तरह हिन्दी-अंग्रेजी में युद्ध का माहौल पैदा करना चाहते है। हम-आप न केवल हिन्दी का विकास चाहते हैं, वरन हिन्दी वालों का भी विकास चाहते हैं। ... और यदि विकास के लिये, उन्नति के लिये हिन्दी वालें इंग्लिश सीखते हैं, तो इसमें हर्ज ही क्या है ? कोई हम हि...