विधायक निधि तो है ना ?
पंकज व्यास
कुछ समय से आऊट ऑफ स्टेशन था। रतलाम आया तो देखा कि लोगों में घोर निराशा है। अच्छे-अच्छे बुद्घिजीवियों तक का सोचना है कि रतलाम गड्डे में गिर गया। लोगों ने निर्दलीय को जिताकर गलती की, प्रदेश में भाजपा की सरकार है और रतलाम में निर्दलीय विधायक। कैसे बैठेगा तालमेल और कैसे होगा विकास। यही बात लोगों के मन में रहरह कर उठ रही है।
ऐसे निराशा के माहौल में एक व्यक्ति से मेरी मुलाकात हुई। वह मुझसे बोला, अपना शहर तो गड्डï़े में गिर गया रे, समझो रतलाम का विकास रूक गया। मैंने पूछा- क्यों भई ऐसा क्या हो गया? उसने कहा इतना भी नहीं समझा, एमपी में बीजेपी की सरकार और अपने रतलाम में विधायक चुना गया निर्दलीय, अब तो समझो विकास का पहिया रूक गया...?
मैंने उससे कहा, विधायक कोई भी हो उससे क्या फर्क पड़ता है, रतलाम का विकास कैसे रूक गया?, रतलाम गड्डे में कैसे? मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
उसने मेरी बुद्घि पर तरस खाया और समझाने लगा, भई कलमकार तुझको समझ क्यों नहीं आताï? प्रदेश में भाजपा की सरकार है और अपने पारस दादा निर्दलीय है, क्या वे विकास करा पाएंगे?
मैं बोला, क्यों नहीं करा पाएंगे। वे पड़े लिखे हैं, समझ दार है। उनको प्रशासनिक अनुभव है और अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शांत चित्त है, सबको साथ मेें लेकर चलने वाले हैं। वे अपने विरोधियों तक पर कोई टिप्पणी तक नहीं करते हैं, तो फिर दादा तो निर्दलीय है, विरोधी नहीं। कोई शिवराज रतलाम की उपेक्षा थोड़े ही करेंगे। उनके सामने तो समग्र प्रदेश का विकास है और रतलाम अछूता नहीं रहेगा...।
मुझे बीच में ही रोका और वह बोला, नहीं रे, तू नहीं समझेगा ये सब बातें। ये राजनीति है तेरी समझ के बाहर है।
मैंने कहा, सच कहा आपने ये राजनीति है, मेरी समझ से बाहर है, वरना अच्छे-अच्छे बुद्घिजीवी तक आपके जैसा ही राग अलाप रहे हैं, यह तक भूल गए कि प्रदेश की बीजेपी सरकार रतलाम के साथ पक्षपात करेगी भी तो क्या हुआ, विधायक निधि नाम की कोई चीज तो होती है कि नहीं? विधायक निधि से तो विकास हो सकता है कि नहीं? और फिर लोकसभा भी पास में आ रहे हैं शिवराज सिंह कोई रिस्क तो लेंगे नहीं, आखिर लोकसभा चुनाव में भी तो सत्ता से ईश्क लड़ाना है।
बंंधुओं, मैंने लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं माना। उसने तो एक ही रट लगा रखी है, कि रतलाम खड्डे में चला गया। आखिर, एक निर्दलीय को जिताकर हमने गुनाह जो किया है। हमारे एमपी के रतलाम के तो ये हाल है। कहीं न कहीं, आपके इधर भी तो कोई निर्दलीय चुनाव लड़ा होगा और जिता। अगर ऐसा है तो समझो भैया कि विधायक निधि नाम की भी कोई चीज होती है, उससे कुछ तो विकास होगा कि नहीं? भाया, आपको बात समझ नहीं आए, तो राजनीति कोरी राजनीति कर सकते हैं और बैठे बिठाए निर्दलियों को और विपक्श को विकास न करने का बहाना दे सकते हों। ठीक है ना?
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कुछ समय से आऊट ऑफ स्टेशन था। रतलाम आया तो देखा कि लोगों में घोर निराशा है। अच्छे-अच्छे बुद्घिजीवियों तक का सोचना है कि रतलाम गड्डे में गिर गया। लोगों ने निर्दलीय को जिताकर गलती की, प्रदेश में भाजपा की सरकार है और रतलाम में निर्दलीय विधायक। कैसे बैठेगा तालमेल और कैसे होगा विकास। यही बात लोगों के मन में रहरह कर उठ रही है।
ऐसे निराशा के माहौल में एक व्यक्ति से मेरी मुलाकात हुई। वह मुझसे बोला, अपना शहर तो गड्डï़े में गिर गया रे, समझो रतलाम का विकास रूक गया। मैंने पूछा- क्यों भई ऐसा क्या हो गया? उसने कहा इतना भी नहीं समझा, एमपी में बीजेपी की सरकार और अपने रतलाम में विधायक चुना गया निर्दलीय, अब तो समझो विकास का पहिया रूक गया...?
मैंने उससे कहा, विधायक कोई भी हो उससे क्या फर्क पड़ता है, रतलाम का विकास कैसे रूक गया?, रतलाम गड्डे में कैसे? मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
उसने मेरी बुद्घि पर तरस खाया और समझाने लगा, भई कलमकार तुझको समझ क्यों नहीं आताï? प्रदेश में भाजपा की सरकार है और अपने पारस दादा निर्दलीय है, क्या वे विकास करा पाएंगे?
मैं बोला, क्यों नहीं करा पाएंगे। वे पड़े लिखे हैं, समझ दार है। उनको प्रशासनिक अनुभव है और अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शांत चित्त है, सबको साथ मेें लेकर चलने वाले हैं। वे अपने विरोधियों तक पर कोई टिप्पणी तक नहीं करते हैं, तो फिर दादा तो निर्दलीय है, विरोधी नहीं। कोई शिवराज रतलाम की उपेक्षा थोड़े ही करेंगे। उनके सामने तो समग्र प्रदेश का विकास है और रतलाम अछूता नहीं रहेगा...।
मुझे बीच में ही रोका और वह बोला, नहीं रे, तू नहीं समझेगा ये सब बातें। ये राजनीति है तेरी समझ के बाहर है।
मैंने कहा, सच कहा आपने ये राजनीति है, मेरी समझ से बाहर है, वरना अच्छे-अच्छे बुद्घिजीवी तक आपके जैसा ही राग अलाप रहे हैं, यह तक भूल गए कि प्रदेश की बीजेपी सरकार रतलाम के साथ पक्षपात करेगी भी तो क्या हुआ, विधायक निधि नाम की कोई चीज तो होती है कि नहीं? विधायक निधि से तो विकास हो सकता है कि नहीं? और फिर लोकसभा भी पास में आ रहे हैं शिवराज सिंह कोई रिस्क तो लेंगे नहीं, आखिर लोकसभा चुनाव में भी तो सत्ता से ईश्क लड़ाना है।
बंंधुओं, मैंने लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं माना। उसने तो एक ही रट लगा रखी है, कि रतलाम खड्डे में चला गया। आखिर, एक निर्दलीय को जिताकर हमने गुनाह जो किया है। हमारे एमपी के रतलाम के तो ये हाल है। कहीं न कहीं, आपके इधर भी तो कोई निर्दलीय चुनाव लड़ा होगा और जिता। अगर ऐसा है तो समझो भैया कि विधायक निधि नाम की भी कोई चीज होती है, उससे कुछ तो विकास होगा कि नहीं? भाया, आपको बात समझ नहीं आए, तो राजनीति कोरी राजनीति कर सकते हैं और बैठे बिठाए निर्दलियों को और विपक्श को विकास न करने का बहाना दे सकते हों। ठीक है ना?
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इसके पहले भी तो भा.ज.पा. का विधायक था
तब क्या विकास हुआ?