इस्तीफा देने से समस्या का समाधान होगा? कठोर निर्णय लेना होगा

वाहिद पठान खान, ताल
आतंकवादियों द्वारा निरंतर हमारे देश के भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों नगरों, महानगरों, संसद भवन, धार्मिक स्थलों इत्यादि स्थानों पर थोड़े-थोड़े समय के अंतराल में चंद मु_ïीभर आतंकी आते हैं और हमारी सारी सुरक्षा व्यवस्था, खुफिया एजेंसियों को धता बताते हुए सैंकड़ों बेगुनाह निर्दोष लोगों का नरसंहार कर अपने नापाक मंसुबों को पूरा करने पर तुले रहते हैं। घटना घटित कर चले जाते हैं।
इस बार आतंकियों ने भारतवर्ष की आर्थिक क्षेत्र की मुंबई महानगरी की विशाल ईमारतों में आतंक का नंगा नाच एवं खुले रूप से मौत का तांडव दिखा कर सारी सीमाएं लांघ दी हैं। सैकड़ों लोगों को मौत की गहरी नींद सुला दिया। कईं लोगों को अपाहित बना दिया, तो कई महिलाओं को विधवा बना दिया। साथ ही हमारे देश ने अपने जाबाज अफसरों, जवानों की शहादत से होटल में बंधक बनाकर रखे भारतीयों, विदेशियों को छुड़ाने में अपनी जान की कीमत चुकाई।
हर भारतीय देश के विरों पर गौरव होने के साथ उन्हें श्रृद्घांजलि अर्पित कर रहा है, परंतु इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि ऐसी विकट परिस्थितियों में भी हमारे राजनैतिक दल या तो अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते हैं या फिर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुए सुरक्षा व्यवस्था की नाकामियाबियों, कमियों को गिनाते हुए मृतकों को आर्थिक सहायता देते हैं, बयानबाजी कर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लेते हैं। घटनाएं घटित होने के कुछ समय बात तक सुरक्षा व्यवस्था बनी रहती है, परंतु कुछ दिनों के बाद वहीं ढाक के तीन पात। आतंकवादी चाहे जो भी हो उनका एकमात्र लक्ष्य रहता है, देश के आपसी भाईचारे को नष्ट करते हुए देश की आर्थिक स्थिति कमजोर करना, जिससे हम पिछड़े रहें।
इस बार तो उन्होंने सीधा हमला कर यह बताने की कोशिश की है कि भारत में विदेशी भी सुरक्षित नहीं हैं, जिसका सीधा असर देश में पर्यटन आदि उद्योगों पर पड़े। साथ ही उक्त घटना होने के बाद क्या किसी के द्वारा अपने पद से इस्तीफा देने से समस्या का समाधान हो जाएगा, बिल्कुल नहीं। हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद करने के साथ अपनी-अपनी जिम्मेदारियां समझते हुए, राष्टरप्रेम का अलख जगाए रखना होगा। सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर दृढ़ इच्छा शक्ति बनाने हुए कठोर निर्णय लेने होंगे, तभी यह आतंकवाद का जिन्न खत्म होगा, अन्यथा इसी प्रकार बेगुनाह लोग मारे जाते रहेंगे और राजनेता अपनी रोटियां सेंकते रहेंगे।
[लेखक दैनिक प्रसारण के ताल (रतलाम)में संवाददाता हैं ]

Comments

इस्तीफा देने से समस्या का समाधान नही हो सकता है अभी तक का इतिहास गवाह है वरन जिम्मेदारी निर्धारित की जाना चाहिए.
Aadarsh Rathore said…
कठोर निर्णय भी कैसे लें वाहिद साहब
कुछ ऊंच नीच हो गई तो कठोर कदमों को कार्यान्वित करने वालों पर किसी न किसी तरह से धर्म विशेष पर अत्याचार करने का आरोप लग सकता है। इस देश में नेताओं ने इतना ज़हर भर दिया है कि कुछ भी करने से पहले डर लगता है...
बेचारे नेता! देश की सम्पदा पर झाड़ू पौंछे लगा कर कूड़ेदान रूपी पेट तक पहुँचाने की जिम्मेदारी इनकी है...जब चाहे कुर्सी पर बैठा दो या उतार दो...उफ़ तक न करेंगे...
कठोर माने??????? हम लोग कठोर कदम से लेकर कठोर संकेत सुन-सुन के पक गये है। कब्र मे टाँग लटकाये मनमोहन को देखकर क्या आपको लगता है कि वे कुछ कठोर कर पायेंगे। जिस दिन जनता सडक पर उतरकर इनकी खबर लेना शुरु करेगी उसदिन ये सुधरेंगे। उससे पहले तक बहुत कुछ झेलना बाकी है।
Hamara Ratlam said…
निश्चित रूप से नेताओं के इस्तीफा देने से समाधान नहीं होगा, एक दल के स्थान पर दूसरा दल आ जावेगा पर दलदल तो बना ही रहेगा। अब कठोर निर्णय जनता को लेना है।
Anil Pusadkar said…
सच तो यही है कि जनत्ता मरती रहेगी और नेता रोटी सेँकते रहेँगे.

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